*शनि व चंद्र युति*
शनि ग्रह बहुत ही मंद गति से चलने वाला ग्रह है जबकि चंद्र ग्रह तेज गति से चलने वाला ग्रह है इस हिसाब से दोनों का जो विरुद्ध स्वभाव सामने आता है जिसके कारण इन दोनों की युति आशुभ मानी जाती है।
जन्म कुंडली में *शनि* और *चंद्र* ग्रह की युति से *विषयोग* बनता है। ऐसा जातक जीवन में विष के समान तमाम कठिनाइयों कष्ट को भोगता है। जिससे व्यक्ति न्यायप्रिय, मेहनती, ईमानदार व वैराग्य भाव का जन्म भी होता है। गुरु की शुभ दृष्टि से अशुभ फल मे कमी आती हैं।
*जन्म कुंडली में विष योग:-*
जन्मकुंडली में *चंद्र* व *शनि* ग्रह युति मे किसी भाव मे बैठे हो या कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चंद्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र में हो अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों का दृष्टि संबंध हों तो तब भी विष योग बनता है।
गोचर में जब शनि चंद्र के ऊपर से या जब चंद्र शनि के ऊपर से निकलता है तब विष योग बनता है।
शनि की दशा और चंद्र का प्रत्यंतर हो अथवा चंद्र की दशा हो एवं शनि का प्रत्यंतर हो तो भी विष योग बनता है।
*लग्न:-* प्रथम भाव में शनि- चंद्र का विष योग बनता है तो जातक शारीरिक रूप से बेहद दुर्बल, रोग ग्रस्त रहता है।
*द्वितीयभाव:-* जातक जीवन भर धनाभाव से ग्रसित व आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती। उसे धन का नुकसान उठाना पड़ता है।
*तृतीय भाव:-* जातक को अपने भाई-बहनों से कष्ट मिलता है।भ्रम की स्थिति में रहता है जिसके कारण वह खुद को निर्णय लेने में असक्षम महसूस करता है। उसे मानसिक तनाव झेलना पड़ता है।
*चतुर्थ भाव:-* जातक को माता का सुख प्राप्त नहीं होता है या मातृ सुख में कमी लाता हैं।
*पंचम भाव:-* जातक की विवेकशीलता व संतान का नाश करती हैं।
*छठां भाव:-* जातक के अनेक शत्रु होते हैं। वह ज़िंदगी भर कर्ज़ में डूबा रहता है।रोग में बढ़ोतरी कर देता है।
*सप्तम भाव:-* पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े होते हैं। कभी-कभी स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि तलाक तक की नौबत आ जाती है।
*अष्टम भाव:-* दुर्घटना के अधिक योग बनते हैं परन्तु ऐसे जातक दानवीर और चीजों का दान करता है, इसलिए इस भाव में अगर ये योग बनें तो ये घातक नहीं माना जाता है।
*नवम भाव:-* जातक नास्तिक हो तो भाग्यहीन होता है। उसे गुरुओं का साथ व पिता का सुख नहीं मिलता।
*दशम भाव:-* जातक के पद-प्रतिष्ठा में कमी व मनचाही नौकरी नहीं मिलती।
*एकादश भाव:-* जातक के बार-बार एक्सीडेंट करवाने की संभावना व उसके आय के साधन लाभ सीमित होते हैं।
*द्वादश भाव:-* व्यय को आय से बहुत अधिक बढ़ाकर जातक का जीवन कष्टमय बना देने में सक्षम है।
*उपाय*
चंद्र ग्रह को शांत रखने से ये योग खत्म हो जाता है, इसलिए चंद्रमा की पूजा करें और सफेद रंग की चीजों का दान हर शुक्रवार के दिन करें।
तिल के पानी से शिवलिंग का अभिषेक करें।
हर शनिवार के दिन एक कटोरी में तेल डाल दें और इसमें अपनी छाया को देखें। उसके बाद ये तेल दान कर दें।
रात में दूध ना पीएं। मांस और मदिरा से दूर रहकर माता की सेवा करें।
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