लंबी यात्रा पर जाने से पहले ध्यान में रखने लायक बातें
ज्योतिष शास्त्र में समय मुहूर्त एवं नक्षत्र और समय का काफी महत्व बताया गया है। हम जीवन में काफी सारी यात्राएं करते हैं जिनमें से काफी सारे यात्राएं बहुत लंबी होती है।व्यक्ति जब भी कोई यात्रा करता है तो यह आशय रहता है कि उसकी यात्रा सुखमय पूर्ण हो। उसकी यात्रा में कोई भी बाधा या विघ्न उत्पन्न ना हो।ज्योतिष शास्त्र में ऐसी काफी सारी बातें बताई गई है अगर इन बातों का ध्यान में रखकर यात्रा की जाए तो हमेशा यात्रा सफल होती है। आज हम यात्रा करते समय ध्यान में रखने वाली ऐसी बातों का अध्ययन करेंगे जिसके कारण आपकी यात्रा सुखमय पूर्ण हो।
शुभ समय, शुभ नक्षत्र, शुभ दिन और शुभ दिशा से यात्रा का प्रारंभ करने से यात्रा में किसी भी प्रकार का विघ्न उत्पन्न नहीं होता और व्यक्ति अपनी यात्रा पूर्ण करके सकुशल और खुशी खुशी घर वापस आ जाता है। अत: यदि आप तीर्थ यात्रा या किसी अन्य पर्यटन यात्रा के लिए जा रहे हैं या घुमने फिरने के लिए जा रहे हैं तो यह बातों का ध्यान अवश्य रखें।
*1.दिशाशूल :* शनिवार और सोमवार को पूर्व दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, तथा गुरुवार को दक्षिण दिशा की यात्रा नहीं करना चाहिए। रविवार और शुक्रवार को पश्चिम की यात्रा नहीं करनी चाहिए, बुधवार और मंगलवार को उत्तर की यात्रा नहीं करनी चाहिए, इन दिनों में और उपरोक्त दिशाओं में यात्रा करने से दिकशूल माना जाता है।
अगर इस दिन यात्रा करनी हो तो इन बातों का रखें ध्यान
यात्रा करना ही हो तो रविवार को पान या घी खाकर, सोमवार को दर्पण देखकर या दूध पीकर, मंगल को गुड़, खाकर, बुधवार को धनिया मुंग या तिल खाकर, गुरुवार को जीरा या दही खाकर, शुक्रवार को दही पीकर और शनिवार को अदरक या उड़द खाकर प्रस्थान किया जाए तो ऐसी यात्रा अवश्य ही आपको सफलता दिला सकती है।
2.नक्षत्र त्याग :आर्द्रा, भरणी, कृतिका, मघा, उत्तरा विशाखा और आश्लेषा ये नक्षत्र त्याज्य है।
3. तिथि त्याग- षष्ठी, द्वादशी, रिक्ता तथा पर्व तिथियां भी त्याज्य है।
4.यात्रा के लिए शुभ नक्षत्र - अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, हस्त, मृगशिरा, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य और रेवती ये नक्षत्र यात्रा के लिए शुभ है और मिथुन, कन्या, मकर, तुला ये लगन शुभ है। सभी दिनों में हस्त, रेवती, अश्विनी, श्रवण और मृगशिरा ये नक्षत्र सभी दिशाओं की यात्रा के लिए शुभ बताए गए है।
5.तिथि योग : यात्रा के लिए प्रतिपदा श्रेष्ठ तिथि मानी जाती है, द्वितीया कार्यसिद्धि के लिए, तृतीया आरोग्यदायक, चतुर्थी कलह प्रिय, पंचमी कल्याणप्रदा, षष्ठी कलहकारिणी, सप्तमी भक्षयपान सहित, अष्टमी व्याधि दायक, नवमी मौत दायक, दसमी भूमि लाभ प्रद, एकादशी स्वर्ण लाभ करवाने वाली, द्वादशी प्राण नाशक और त्रयोदशी सर्वसिद्धि दायक होती है। पूर्णिमा एवं अमावस्या को यात्रा नहीं करनी चाहिए, तिथि क्षय मासान्त तथा ग्रहण के बाद के तीन दिन यात्रा नुकसान दायक मानी गयी है।
6.राहु काल : राहु काल में यात्रा प्रारंभ ना करें।राहु काल में यात्रा आरंभ करना काफी शुभ माना गया है।आपको सूचित किया जाता है कि राहुकाल में कभी भी यात्रा का प्रारंभ ना करें।
*रविवार को शाम 4.30 से 6.00 बजे तक राहुकाल होता है।
*सोमवार को दिन का दूसरा भाग यानी सुबह 7.30 से 9 बजे तक राहुकाल होता है।
* मंगलवार को दोपहर 3.00 से 4.30 बजे तक राहुकाल होता है।
*बुधवार को दोपहर 12.00 से 1.30 बजे तक राहुकाल माना गया है।
* गुरुवार को दोपहर 1.30 से 3.00 बजे तक का समय यानी दिन का छठा भाग राहुकाल होता है।
*शुक्रवार को दिन का चौथा भाग राहुकाल होता है यानी सुबह 10.30 बजे से 12 बजे तक का समय राहुकाल है।
*शनिवार को सुबह 9 बजे से 10.30 बजे तक के समय को राहुकाल माना गया है।*
अगर राहु काल में यात्रा करना जरूरी हो तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें।
यदि राहुकाल के समय यात्रा करना जरूरी हो तो पान, दही या कुछ मीठा खाकर निकलें। घर से निकलने के पूर्व पहले 10 कदम उल्टे चलें और फिर यात्रा पर निकल जाएं। दूसरा यदि कोई मंगलकार्य या शुभकार्य करना हो तो हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद पंचामृत पीएं और फिर कोई कार्य करें।
दिन और रात को बराबर आठ भागों में बांटने के बाद आधा आधा प्रहर के अनुपात से विलोम क्रमानुसार राहु पूर्व से आरम्भ कर चारों दिशाओं में भ्रमण करता है। अर्थात पहले आधे प्रहर पूर्व में दूसरे में वाव्य कोण में तीसरे में दक्षिण में चौथे में ईशान कोण में पांचवें में पश्चिम में छठे में अग्निकोण में सातवें में उत्तर में तथा आठवें में अर्ध प्रहर में नैऋत्य कोण में रहता है। रविवार को नैऋत्य कोण में सोमवार को उत्तर दिशा में, मंगलवार को आग्नेय कोण में, बुधवार को पश्चिम दिशा में, गुरुवार को ईशान कोण में, शुक्रवार को दक्षिण दिशा में, शनिवार को वायव्य कोण में राहु का निवास माना जाता है। राहु दाहिनी दिशा में होता है तो विजय मिलती है, योगिनी बायीं तरह सिद्धि दायक होती है, राहु और योगिनी दोनों पीछे रहने पर शुभ माने गए हैं, चन्द्रमा सामने शुभ माना गया है।
7. अन्य विचार : प्रतिपदा और नवमी तिथि को योगिनी पूर्व दिशा में रहती है, तृतीया और एकादशी को अग्नि कोण में त्रयोदशी को और पंचमी को दक्षिण दिशा में चतुर्दशी और षष्ठी को पश्चिम दिशा में पूर्णिमा और सप्तमी को वायु कोण में द्वादशी और चतुर्थी को नैऋत्य कोण में, दसमी और द्वितीया को उत्तर दिशा में अष्टमी और अमावस्या को ईशानकोण में योगिनी का वास रहता है, वाम भाग में योगिनी सुखदायक, पीठ पीछे वांछित सिद्धि दायक, दाहिनी ओर धन नाशक और सम्मुख मौत देने वाली होती है।
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