Pages

Search This Website

Tuesday, 13 October 2020

कुंडली में गुरु का प्रभाव

 

कुंडली में गुरु का प्रभाव

बृहस्पति यानी के गुरु धन संपत्ति , ज्ञान संतान एवं प्यार का कारक है। कुंडली के सप्तम भाव में पुरुष के लिए गुरु का बलवान होना अति आवश्यक है।इसके अलावा गुरु पंचम, नवम एवं कुंडली के बारहवें भाव का भी कारक है। कुंडली के द्वितीय भाव से धन सुख संपत्ति एवं वैभव का विचार किया जाता है। कुंडली के पंचम भाव से प्यार संतान और विद्या का विचार किया जाता है।कुंडली के सप्तम भाव से विवाह जीवन और विवाह कब होगा और किसके साथ होगा इसका विचार किया जाता है। कुंडली का नवम भाव व्यक्ति का भाग्य स्थान है। कुंडली का 12 वां भाग जातक का आध्यात्म भाव दर्शाता है इसके अलावा यह भाव ज्योतिष में व्यय स्थान के नाम से जाना जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कुंडली के अधिकतम भावों का कार्य कत्व बृहस्पति देव यानी कि गुरु करता है।

अगर किसी जातक की कुंडली में गुरु अशुभ होगा या फिर गुरु के ऊपर अशुभ ग्रह की दृष्टि होगी तो ऐसा जातक धनहीन गरीब संतान हीन विद्या हीन तरह भाग्यहीन कहलाएगा।

कुंडली में गुरु ग्रह का बलवान होना अति आवश्यक है।पुरुष की कुंडली में अगर गुरु बल हीन होगा तो उसका सप्तम स्थान भी बलहीन हो जाएगा जिसके कारण उसके वैवाहिक जीवन में काफी सारी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसलिए कुंडली में सभी ग्रहों में से गुरु ग्रह का शुभ होना अति आवश्यक है।

जिस भाग कौन देखता है उस भाग को शुभत्व प्रदान करता है।

कब बनता है गुरु अशुभ।

देवों के गुरु बृहस्पति के नाम से जाने जाने वाला गुरु धन और मीन राशि में अपनी स्वराशि में तथा कर्क में अपनी उच्च राशि में होता है। अपनी स्वराशि में अगर गुरु विराजमान होगा या तो अपनी उच्च राशि में अगर गुरु विराजमान होगा तो गुरु कुंडली में शुभ फल देगा। इसके अतिरिक्त इसका अशुभ का विचार करें तो केंद्र का मालिक होगा तो पाराशरी सिद्धांत के अनुसार यह ग्रह शुभ फल प्रदान नहीं करेगा।लघु पाराशरी में पाराशर ऋषि ने यह स्पष्ट करा है कि अगर केंद्र का स्वामी अगर शुभ ग्रह होगा तो वह अशुभ फल प्रदान करेगा।इस तरह से गुरु ग्रह  शुभ ग्रह होने के कारण अगर कुंडली के केंद्र स्थानों का मालिक होगा तो वह कुंडली में अशुभ फल प्रदान करेगा। कुंडली का प्रथम स्थान कुंडली का चतुर्थ भाव सप्तम भाव एवं दशम भाव कुंडली का केंद्र स्थान माना जाता है।अगर इन चार केंद्र स्थानों का मालिक कोई शुभ ग्रह होगा तो वह कुंडली में अशुभ फल प्रदान करेगा।

अगर बृहस्पति यानी कि गुरु ग्रह अपनी नीच राशि में यानी की मकर राशि में होगा तो ऐसा गुरु अशुभ फल प्रदान करेगा।

गुरु ग्रह किसी पाप ग्रह की दृष्टि में या तो पाप ग्रह के साथ युति में होगा तो भी ऐसा ग्रह यानि कि ऐसा गुरु कुंडली में अशुभ फल प्रदान करेगा।

गुरु ग्रह कुंडली के 6,8 और 12वें स्थान के मालिकों के साथ विराजमान होगा और उसके साथ युति में होगा तो भी गुरु ग्रह अशुभ फल प्रदान करेगा।

बृहस्पति अपनी मकर राशि में नीच का होता है इसलिए अगर गुरु अपनी नीच राशि मकर में विराजमान होगा तो भी गुरु ग्रह अपना अशुभ प्रभाव देगा।

गुरु ग्रह कुंडली के छठे स्थान एवं आठवें स्थान यादव बारहवें स्थान में स्थित होगा इन स्थानों के स्वामियों के साथ स्थित होगा तो भी गुरु ग्रह कुंडली में अशुभ फल प्रदान करेगा।

अगर कुंडली में गुरु ग्रह राहु या केतु के साथ विराजमान होगा तो यह चांडाल योग का निर्माण करेगा।गुरु ग्रह राहु या केतु के साथ चांडाल योग का निर्माण करेगा तो यह कुंडली में अशुभ प्रभाव देगा।

जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में बृहस्पति होता है, वह पिता के घर में अधिक समय तक नहीं रहता।. वह कृशकाय और दीर्घायु होता है।. द्वितीय भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण धनी होता है।. वह कुटुंब से स्नेह रखता है।. उसकी वाणी संयमित होती है।. यदि शत्रु राशि में गुरु हो, तो जातक शत्रुओं से घिरा हुआ, विवेकहीन, सेवक, निम्न कार्यों में लिप्त रहने वाला और आलसी होता है।. स्वग्रही एवं शुभ राशि में होने पर जातक ज्ञानपूर्वक किसी उत्तम स्थान पर मृत्यु को प्राप्त करता है।. वह सुखी होता है।. बाह्य संबंधों से लाभान्वित होता है। स्त्री राशि में होने के कारण अशुभ फल और पुरुष राशि में होने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।.

गुरु ग्रह का कुंडली में शुभ प्रभाव

अगर गुरु ग्रह कुंडली के त्रिकोण स्थान में अपनी स्वराशि में विराजमान होगा तो गुरु अपना शुभ प्रभाव देगा।

धनु राशि एवं मीन राशि गुरु ग्रह की स्वराशि होती है। गुरु ग्रह कर्क में उच्च का होता है अगर गुरु कुंडली के त्रिकोण स्थान में अपनी उच्च राशि यानी कि कार्यक्रम में विराजमान होगा तो भी यह अपना शुभ प्रभाव जरूर देगा।

गुरु ग्रह पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो या तो गुरु ग्रह त्रिकोण एवं केंद्र स्थान के मालिक के साथ यूपी में होगा तो भी गुरु ग्रह अपना शुभ प्रभाव देगा।

चंद्र से अगर गुरु दशम स्थान में होगा और चंद्र कुंडली में गुरु दशम स्थान में विराजमान होगा तो ऐसा गुरु जातक को राजयोग प्रदान करता है।

कुंडली के केंद्र स्थान में अगर गुरु चंद्र के साथ होगा और उसके साथ युति करता होगा तो ऐसे जातक की कुंडली में गजकेसरी योग का निर्माण होता है और ऐसा जातक धन-धान्य से समृद्ध होता है।

अगर गुरु ग्रह केंद्र या त्रिकोण में अपनी उच्च राशि या तो स्वराशि में विराजमान होगा और इस पर किसी आशुभ ग्रह की दृष्टि नहीं होगी तो भी गुरु ग्रह कुंडली में शुभ प्रभाव प्रदान करेगा।

गुरु ग्रह का प्रभाव तब अधिक होता है जब गुरु ग्रह केंद्र या त्रिकोण के किसी ग्रह के साथ युति में बैठा होता है।

स्त्री की कुंडली के लिए गुरु ग्रह अत्यंत ही महत्व रखता है अगर किसी स्त्री की कुंडली में गुरु ग्रह अशुभ फल प्रदान करता होगा तो ऐसी स्त्री का वैवाहिक जीवन सुख कारी नहीं होगा।

स्त्री की कुंडली के लिए गुरु का शुभ होना अत्यंत जरूरी है।

स्त्री की कुंडली में अगर गुरु ग्रह अपना अशुभ प्रभाव डालेगा तो ऐसी स्त्री को विवाह में बाधा उत्पन्न होगी।

अशुभ गुरु अगर कुंडली में विराजमान होगा तो ऐसी स्त्री को संतान प्राप्ति और विवाहित जीवन में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

जिस जातक के जन्म लग्न से सप्तम भाव में बृहस्पति हो, तो ऐसा जातक, बुद्धिमान, सर्वगुणसंपन्न, अधिक स्त्रियों में आसक्त रहने वाला, धनी, सभा में भाषण देने में कुशल, संतोषी, धैर्यवान, विनम्र और अपने पिता से अधिक और उच्च पद को प्राप्त करने वाला होता है।. इसकी पत्नी पतिव्रता होती है।. मेष, सिंह, मिथुन एवं धनु में गुरु हो, तो शिक्षा के लिए श्रेष्ठ है, जिस कारण ऐसा व्यक्ति विधवान, बुद्धिमान, शिक्षक, प्राध्यापक और न्यायाधीश हो सकता है।

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.